मांगने की समझ शक्ति Understanding power of asking
वैसे तो मानव जो करता है कहता है वह कला ही होती है। चाहे शरीर के इशारे हो या हुँ हाँ हो या स्पष्ट बोलकर या कर के दिखाना हो। हम अपनी क्षमता के अनुसार कर दिखाते हैं इन सब के करने या दिखाने के बदले में हम कुछ मांग सकते हैं और मांगने भी जरूरी हो जाता है। नही तो आपकी कला का मान नहीं रहता है। कुछ नहीं मांगने से आपकी कला का महत्व ना के बराबर हो जाता है। रंगकर्मियों को दर्शको की मांग रहती हैं। राजनेता को भीड़ में मतदाता ही मतदाता नज़र आते हैं। निर्माण कर्ता को ग्राहकों की मांग रहती हैं। बीना कद्र दानों के अपनी कला के कोई मायने नहीं। किससे क्या मांगना और कितना मांगना हैं। यह समझ होनी चाहिए ताकि प्रयाप्त मात्रा में उससे मिल सके। जैसे गुरु से ज्ञान,बड़ो से आशीर्वाद,मित्रों से प्रेम प्यार, रिश्तेदारों से अपनापन और जीवनसंगी से प्रेम पूर्ण समय मांगना चाहिए। अगर मांगना भगवान से तो भगवान को ही मांग लेना चाहिए। भगवान मिल गये तो सब मिल गये। जहां तक भीख मांगने की बात है तो इससे बचना ही चाहिए। उधार मांगना की व्यापार नीति है। By the way, what a human says is art. Whether it is the gestures of the body or