जीवन
जीवन सुख_दुख का संगम हैं एक आता है तो दुसरा जीवन से निकल लेता है यही क्रम जीवन शुरू से अंत तक चलता रहता है। सब का जीवन संघर्ष से भरा रहता है। जिसके पास कुछ नहीं वो पाना चाहता है। जिसके पास है वह उसे बचाकर रखने में और जोड़ने में लगा रहता है। यही क्रम लगा रहता है जीवन कब अंतिम सोपान पर चला जाता है पता ही नहीं लगता है जीवन एक सच्चाई है। वैसे जीवन का कोई ठोस उद्दैष्य नहीं होता है। इसको सही ढंग से जीना होता है। जो सामाजिक दायरों से बंधा होता है। कुछ अवश्य कार्य करने होते हैं। कुछ करने की मनाही होती हैं। जो इस भौतिक संसार में आया था उन्होनें कुछ न कुछ किया था। जिनका काम हमें अच्छा लगा वो हमारे आदर्श है। जिनका काम हमें अच्छा नहीं लगा वो हमारे आदर्श नहीं हैं। जीवन तभी सफल होता है जब जीवन छलचंदो;जयचंदो रहित हो। इतिहास गवाह है जब अपने ही षड़यंत्र करने लगे या षड़यंत्र रचने वालो का साथ देने लगे तब जीवन जीवन नहीं रहता जीवन एक पार्थिव देह की यात्रा बन जाता है जब अपने ही अपनों के विरूद्व हो जाते हैं तो वो ताकतें सक्रिय हो जाती हैं जो आपके विरूद्व है। व्यति का जीवन ;समाज का ...