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मैं एक विचारक हूँ  इसलिए भाग्य को कम ही मानता रहा हूँ। परन्तु आपका वाजिब लगा इसलिए यथासंभव उत्तर देने की चेष्टा कर रहा हूँ संभवतया पसंद आए!

मेहनत की बात करें तो सबसे अधिक मेहनत पल्लेदार और रिक्शाचालक तथा अन्य क्षेत्रो मे शारीरिक श्रम करने वाले मजदूरो से अधिक मेहनत कोई भी नही करता है!

रही किस्मत और मेहनत करने के बावजूद भी उचित फल न मिलने की,तो लोग ऐसे लोगो से खुद की तुलना करने लगते हैं जिनके पास पैतृक संपत्ति हो अथवा उनके धन कमाने के वास्तविक स्रोत ज्ञात न हों! बल्कि उनके खर्च और ऐशोआराम देखकर ही कुढते रहते हैं।

जबकि विज्ञान की भाषा मे कहें तो सच यह कि सूत्र होता है F=ma जहाँ F बल का तथा m द्रव्यमान तथा a त्वरण को दर्शाता है।

सरल शब्दों मे कहें तो बल यदि निश्चित दिशा मे और सही माप मे लगे तभी वस्तु की दशा मे परिवर्तन संभव हो सकता है।

जैसे बल भी लगाया मगर उसकी दिशा और माप उचित न होगी यानि इन तीनो मे से कोई भी एक कमी या परिपूर्ण न होगी तो फल मिलना असंभव है।

जिस प्रकार एक मनुष्य यदि दीवार को गिराने की चेष्टा केवल अपने हाथो के बल से ही करे तो दीवार गिरा पाना असंभव है किन्तु वही व्यक्ति यदि फावडे या कुदाल से गिराने का प्रयास करे तो समय अधिक लग सकता है परन्तु दीवार गिरेगी जरूर( मांझी द्वारा पहाड काटने वाली घटना से आप भी अनभिज्ञ न होगें?)

आप दस बीस या पचास आदमी मिलकर एक साथ बल तब भी दीवार गिरा पाना संभव होगा।

लेकिन यदि व्यक्ति हाइड्रा की मदद ले तो कुछ ही मिनटो मे दीवार ही नही एक बडी बिल्डिंग को भी धाराशायी कर सकता है।

इसलिए व्यक्ति को जब अपनी मेहनत के अनुरूप फल नही मिलता तो भाग्य को कोसने लगता है जो संतुष्टि का व जीने का सहारा जरूर बन सकता है।

परन्तु यदि व्यक्ति वास्तव मे ही उपलब्धि या परिणाम पाना चाहता है उसे अपने द्वारा की गयी मेहनत की खामियों को ईमानदारी और पारदर्शिता से स्वयं आंकलन करना होगा कि कमी जरूर मेहनत ये भी कहीं रही है तथा उन कमियो को ध्यान मे रखकर फिर से अधिक जोश व उत्साह के साथ मेहनत करे तो कामयाबी मिलने से कोई भी न रोक सकेगा!

आपको संज्ञानित कराना चाहेंगे कि एडिशन ने बिजली का बल्ब बनाने के लिए 999 बार प्रयास किया और हरबार असफल रहे।

परन्तु अपने द्वारा की गयी खामियो यानि गलतियों को ढूंढकर दूर भी करते गये और अंततः 1000वें प्रयास मे चकाचौंध रोशनी देने वाला बिजली के बल्ब का बेशकीमती आविष्कार यानि उपहार हम सबको देने मे कामयाब रहे।

भाग्य के भरोसे बैठने वाले आलसी और कर्महीन कहे जाते हैं।

परन्तु कर्म की प्रधानता को गीता मे भी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।

यह भी हो सकता है कि भाग्य मे लिखा हो कि जब यह काम इतनी मेहनत से करोगे तभी अमुक फल मिल सकेगा?

इसलिए कर्म की प्रधानता को प्रत्येक धर्म ग्रंथो व महापुरुषों ने भी विशेष महत्व दिया है।

न कि भाग्य को!

कहावत है कि खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान।

खुदा की मेहरबानी से गधा पहलवान जैसा ताकतवर जरूर हो सकता है लेकिन पहलवानी के दांव पेंच केवल पहलवान ही जान सकता है गधा नही!


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