शिव तांडव स्त्रोत Shiv tandav lyrics and song

  1.  शिव तांडव स्त्रोत एक कालजयी रचना है। इसको गाना,बोलना और सुनना सुनाना सबको अच्छा लगता है। क्योंकि यह रचना संस्कृत में है। ज्यादातर इसके शब्दों को लोगबाग नही समझते हैं फिर भी इसको सुनना पसंद करते हैं। संस्कृत को  देवो की भाषा कहते हैं। 
  2. शिव तांडव स्त्रोत भी कालजयी रचना है। जो आज भी बड़ी प्रासंगिक है आज भी इसकी महानता है। जब कही भी इसका गायन होता है तो लोग शांतचित्त होकर सुनते हैं। 
  3. संस्कृत में शब्द ज्यादात्तर एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। इसलिए इनको पढना और बोलना कठिन सा लगता है। पहले हर शब्द अलग-अलग कर के पढ लिया जाय तो फिर पढना बोलना और गायन करना आसान हो जाता है। 

  • The Shiva Tandava source is a classic creation.  Everyone loves to sing, speak and listen to it.  Because this composition is in Sanskrit.  Most people do not understand its words but still like to listen to it.  Sanskrit is called the language of gods.
    1.  The Shiva Tandava source is also a classic creation.  What is very relevant even today is its greatness.  Whenever it is sung, people listen calmly.

    2.  Most of the words in Sanskrit are related to each other.  Therefore, they find it difficult to read and speak.  First of every word is read separately and then it becomes easy to read, speak and sing.

    जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌।

    डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌

    मतलब -- शिव जी के जटाओं से बहने वाले पानी से उनका कंठ पवित्र और गले में जो सांप है वह हार जैसा लग रहा है। और डमरू से डमड डमड की आवाज आ रही है। भगवान शिव तांडव नृत्य कर रहे हैं।


    जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।

    गद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम

    शिव में मेरी आस्था है। शिव जी का सर पर गंगा नदी की धाराएँ अलौकिक है सुशोभित है। मस्तक चमक रहा है। चंद्रमा आभूषण की तरह लग रहा है।


    धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।

    कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि

    जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।


    मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि

    सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।


    भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः

    ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌।


    सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः

    करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।


    धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम

    नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।


    निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः


    करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।


    धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम

    नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।


    निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः

    प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।


    स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे


    जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।


    धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः


    दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।


    तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे

    कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।


    विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌


    इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।


    हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम्


    शिव तांडव नृत्य


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