खुशी का राज Khushi ka Raj
हम इंसान है, इससे क्या बड़ी बात हो सकती हैं? मालिक द्वारा बनाई गई सब रचनाओं मे से श्रेष्ठ रचना है इंसान। इससे बड़ी खुशी क्या चाहिए।
मानव जाति ही खुशियों के राज जानना चाहता है। मनुष्य ने ही प्राकृतिक संसाधनों के तंत्र को बिगाड़ रखा है। सब अन्य जीव अपने-अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं। और वो प्राकृतिक संसाधनों के साथ खिलवाड़ भी नहीं करते। सब जीवो में से मनुष्य ही दुखी है। इसलिए खुश रहने के तरीके मानव ही तलाशता है। आज मनुष्य की वजह से प्राकृतिक संसाधन और अन्य जीव दुखी है। मनुष्य के गलत कार्यो से दुखी होकर वो अपना रौद्र रूप दिखाते हैं। तब मनुष्य के पास अपने आप को सुनिश्चित करने के अलावा कोई अन्य दूसरा रास्ता नहीं हैं। और सबकुछ सहने के अलावा भी।
हम कोरोना महामारी को झेल रहें हैं। नदियाँ के उफान सहा,ताउ ते समुंदरी तूफान का तांडव झेल भी रहें हैं। शायद स्वयं भगवान भी मनुष्य से दुखी होंगे। मनुष्य ही श्रेष्ठ रचनाओं मे से अंतिम रचना है। भगवान ने भी मनुष्य की रचना निर्माण के बाद रचनाओं को बनाना बंद कर दिया।
हकीकत में खुशियों का कोई राज नहीं हैं। सच में यह हमारे द्वारा किये गए निर्माण,नियंत्रक पर आधारित हैं। मनुष्य जहां पंगु हो जाता है वहीं से दुख चालू हो जाता है। अगर आप अपने आप को जरूरतों निम्नतम स्तर तक पहुंचा देते हो। खुशियां अपने आप पास आना शुरू हो जाता है। खुशी आपका चरित्र है, आपकी प्रकृति है। इसलिए अपने प्राकृतिक अवस्था में रहें। निश्चय ही आप खुश रहोगे।
देखा जाए तो खुशी बाहर नहीं, हमारे अंदर का अहसास है। परस्पर विरोधी चीजों से खुशी मिलती हैं। जो हिंसक प्रकृति का होता है। मारधाड़ से खुशी मिलती हैं। कोई घटनाओं को देख सुनकर दुखी या खुशी का अहसास कर लेता है। जो सब बाहरी है। कर्ता का कोई भाव नहीं हैं। कोई कह दे कि हजार साल बाद दुनिया खतम हो जाएगी ऐसा सुनकर आज ही उस दिन की कल्पना कर के अपने आप को और माहौल को परेशान कर देता है। सोचना यह चाहिए कि तब का तब देखा जाएगा। ईर्ष्या रखने वाले दूसरों के सुखी जीवन को अपने आप को दुखी कर लेते हो। और कुछ लोग दूसरों को पीड़ा में देखकर खुश होते हैं।
जब हमारी भावनाएँ तृप्त होती हैं तो खुशी होती हैं। खुशी का अन्य सार्वजनिक तथा सार्वभौमिक बाहरी कारण नही होता है।
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