credit cooperative society and its future क्रेडिट कोओपरेटिव सोसाइटी और जमाकर्ता का भुगतान

Basically credit cooperative society का सहयोग के आधार पर जरूरत के अनुसार गठन होता है। जैसे हाउसिंग सोसाइटी, कार्य के अनुसार सोसाइटी, स्टेट सोसाइटी और मल्टि स्टेट सोसाइटी।

जहां तक क्रेडिट को-ओपेरटिव सोसाइटी होती है वो पहले सदस्यों को अपनी सोसाइटी के सदस्य बनाते हैं। जो छोटी सी राशि से सदस्य बना लेते हैं। असली खेल तो सदस्यता लेने के बाद शुरु होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो लुटने का ठगने का छल करने का। जो कृषि मंत्रालय भारत सरकार जिनको भी अनुमति प्रमाण-पत्र देते हैं आज लगभग सभी का बुरा हाल है। क्लेकशन करने वाले कार्यकर्ता और जमाकर्ता यहां-वहां से आस लगाए बैठे हैं की कोई मदद कर के क्रेडिट को ओपेरटिव सोसाइटियों से भुगतान दिला दे! वैसे तो सभी क्रेडिट कोओपरेटिव गठन पुर्ण वैधानिक तरीके से होता है। और समय -समय पर बैलेंस शीट भी प्रकाशित करते हैं। नियामक संस्थाओं में बैलेंस शीट जमा कराते है।  जो महज एक दिखावा भर होता है।  जो पैसा सदस्यों से सोसाइटियों जमा करती हैं। वो पुरा का पुरा पैसा वैधानिक तरीके से आगे निवेश नहीं कराते और अंदर खाने बंदर बांट चलने लगती हैं। जिसका खामियाजा निवेशकों और क्लेकशन कर्ता(एजेंट, कमीशन कार्यकर्ता ) पर गहरा बुरा असर पड़ता है। आज तो ये हाल है एजेंट आगे -आगे  और जमाकर्ता पीछे -पीछे। 

अगर किसी भी क्रेडिट कोओपरेटिव सोसाइटी को लाईसेंस देते हो तो उस पर एक कोई नियामक होना चाहिये जो क्रेडिट कोओपरेटिव सोसाइटी पर हर तरह का नियंत्रण रख सकें।  ताकि एजेंट और जमाकर्ता ठगे ना जा सके। 

जहां तक बात है जिन लोगों का पैसा क्रेडिट कोओपरेटिव सोसाइटियों मे पैसा फसा है उनको उनका पैसा जल्द ही मिल जाएगा ऐसा किसी दृष्टिकोण से नही दिख रहा है। भुगतान को लेकर मुकदमे बाजी होती हैं। तो सरकारी तंत्र सोसाइटी मालिको को पकड़ पकड़ाकर जैल मे डाल देती। सोसाइटी मालिक किसी न किसी तरीके से बाहर आ जाते हैं। फिर उनको क्या टेंशन। धन गया जमाकर्ता का और धन और इमान गया एजेंटो का। 

नियामको को चाहिए की सोसाइटी से बाहर पहले पैसा किसके नाम पर निकला और तब क्रेडिट /डेबिट  किसने किया उन सब पर कार्रवाइयाँ हो तो भुगतान मिलने के आसार बन सकते हैं।

शातिर क्रेडिट कोओपरेटिव सोसाइटी मालिक बड़े कमीशन और भविष्य सुरक्षित का सपना दिखाकर ऐसा जाल बिछाकर पता नहीं चलता कि कब ये नो दो ग्यारह  हो जाते हैं।  इस वित्तिय धोखाधड़ि में एक बड़ा तंत्र काम में लग जाता है। जो एजेंटो और जमाकर्ता के अटूट विश्वास को गहरी ठेस लगती हैं।

अगर सोसाइटी मालिक इमानदारी से सारे इस वित्तिय धोखाधड़ी का रूटमेप बता दे तो पैसा मिलने की आशाएँ बढ सकती है। सोसाइटी मालिको को चाहिए की भगवान को हाजर-नाजर मानकर सच-सच बता देना चाहिए। खुन-पसीने की कमाई नहीं हड़पनी चाहिए।हंसते सीखो



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