नजरिये का खेल
जब हम किसी घटना,हालात या किसी के प्रति हम जो भाव रखते हैं, सोच बना लेते हैं। प्रमाण पर आधारित हो सकती है या दिल के किसी हिस्से में यह विश्वास घर कर जाता है कि यह गलत है या सही है। फिर हमारा एक नजरिया बन जाता है। उस नजरिये को हम बनाकर रख सकते हैं या बदल भी सकता है। नजरिया बदलने से खेल बदलता है। हमारे मन में या अन्य जगह माहौल तनावपूर्ण हो जाता है तो तब भी हम नजरिया बदलकर खुशी तलाश सकते हैं। नजरिया बदलने से तनाव, आपसाद भी खुशियों में परिवर्तन हो सकता है। सारा खेल भावनाओ के भड़कने पर टिका रहता है। आपकी भावनाएँ भड़क सकती हैं तो सामने वाले की भी भावनाएँ भड़क सकती हैं। भावनाओ के भड़कने से ही सारा खेल शुरु होता है। और फिर सारे गलत खेल शुरु होते हैं। कई बार भावनाओ को दबाने पर वो ओर ज्यादा भड़क जाती हैं। हम दूसरों से कम ही बातें करते हैं चाहे वो कितना भी करीबी हो पर सच यह है हम अपने आप से हर पल बातें करते रहते हैं। हम हर रोज हर विषयों का अपने स्तर पर आकलन करते रहते हैं। इसी आकलन पर निर्भर होता है विपरीत परिस्थितियों में किस तरह की प्रतिक्रिया देते हैं। जब मन विचलित हो तो मन को राहत देने के लिए उस तन